उज्जयनी का धार्मिक एवं संस्कृतिक इतिहास

अवंती के धार्मिक इतिहास का प्रारंभ ऋषि सरभंग के काल से माना जाता है जो की रामायण में राम और वाल्मीकि के समकालीन कहे गए है पली ग्रन्थ ( सरभंग जातक) में सरभंग इसमें विद्या को बनारस के राजा के धर्म उपदेशक का पुत्र बतलाया गया है इसमें विद्या अध्यन तक्षिला में हुआ था वे विज्ञानं एवं सर्व विद्या में अत्यंत निपूर्ण था शिक्षा प्राप्त कर जब वह बनारस लोटे तो उनको बनारस का सर्वोच्च सेनापति बना दिया गया परन्तु बाद में त्याग पत्र दे दिया इसके बाद सन्यास आश्रम ग्रहण कर गोदावरी नदी के किनारे पर कापिथ्य जंगल में अपनी कुटी बना ली उसके प्रथम शिष्य शालिषर उसकी आज्ञा से चन्द्रप्रधोत के राज्य में लम्भचुड स्थान पर निवास किया तथा उसके चतुर्थ शिष्य काल देवल ने दक्षिण पद पर अवंती की सीमा में धन्यशेल पर्वत पर निवास किया |

उज्जयनी का संस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व इस कारन और भी बाद जाता है की यहाँ १२ वर्षो में होने वाले कुम्भ मेला लगता है ऐसे मेले १२ -१२ वर्ष में बारी बारी से गोदावरी तट पर नासिक गंगा तट पर हरिद्वार गंगा यमुना संगम पर प्रयाग में, इन मेलो में हिन्दू साधुओ का जमगट जुड़ता है |
उज्जैन में कुम्भ मेले के साथ साथ महाकाल वन का महत्व केदार तीर्थ एवं बनारस से भी अधिक है प्रथ्वी पर सबसे पुण्यमयी नगरी यही है स्कन्द पुराण के अध्यन से पता चलता है की यदि स्त्रियो एवं शुध्रो को भी मरने पर रूद्र लोक की प्राप्ति होती है |
अवंतिका क्षेत्र का विस्तार एक योजन है | महाकालेश्वर – महाकाल की मूर्ति जहा प्रतिष्ठित है इस मंदिर के सामने एक जलकुंड है ज्सिमे स्नान करने से मनुष्य प्रत्येक द्वन्द से मुक्त हो जाता है इस कुंद का नाम कलह्नाशन
है इस तीर्थ के दक्षिण में प्रथम मात्रक मंदिर है इसके सामने भी मणि कर्णिका कुंड है जो की श्रेष्ठ शंकर तीर्थो में से एक है महाकाल वन का नाम अप्सरा तीर्थ भी है क्योकि यही उर्वशी नामक अप्सरा ने राजा पुरवा को अपना पति बना लिया था |
इस महाकपाल तीर्थ भी कहते है और कुंड का नाम रूद्र सरोवर है |
अवंतिका क्षेत्र में गंधवती नामक पवित्र नदी है जहा पर मातृकाओ का पिंडदान करना चाहिए अवंतिका में अत्री ऋषि ने घोर तब किया था उनकी आभा से सोमदेव की उत्पत्ति हुई जिनकी शीतल किरने इतना जल लायी की शिप्रा नदी बह चली इसलिए शिप्रा नदी को सोमवती भी कहा जाता है | महाकाल वन में शिवलिंगों की संख्या ६६ करोड़ है कहते है भ्रह्मा ने कुश घास इधर उधर फेक दिए थे जिसके कारण इसका नाम कुश स्थली हुआ |
विष्णु पुराण और अग्नि पुराण में भी वर्णन है की अवंती एवं यदू अन्धक विष्णु कुम्भ में कुटुम में वैवाहिक समभंद भी हुए थे उनके अनुसार अन्धकवाशी सुरपुत्र वासुदेव की पाच बहनों में से एक यदुराज कुमारी राजाधि देवी का विवाह अवंती के रजा से हुआ था जिसके २ पुत्र विंद एवं अनुविन्द हुए व विंद और अनुविन्द दोनों अवंतिका के बड़े शूरवीर राजा हुए कुरुक्षेत्र में महा युध्य में दोनों ने एक अधोक्षनी सेना के सेनापति के तरह कोरवो के पक्ष में युध्य किया था तथा शूरवीर की तरह लड़ते हुए अर्जुन के हाथो परास्त हो गए |

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