श्री चिंतामन गणेश मंदिर
यह मंदिर क्षिप्रा नदी के किनारे बना हुआ है। यह माना जाता है कि इस मंदिर में स्थापित गणेश जी की प्रतिमा स्वयंभू है। उनके दोनों ओर उनकी पत्नियां रिद्धि और सिद्धि विराजमान हैं। मुख्य प्रार्थना कक्ष के बारीकी से तराशे गए खंबे परमार काल के समय में बने थे। यहां गणेश को चिंताहरण गणेश कहा जाता है इसलिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।
कलयुग में अगर कोई हमें बचा सकता है तो वह है भगवान राम का नाम। यह बात अनेक धर्म ग्रंथों में कही गई है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। भगवान राम के समय के कुछ प्रमाण आज भी मौजूद हैं, जो लोगों का आस्था का केंद्र है। ऐसा ही एक मंदिर है उज्जैन में स्थित चिंतामन गणेश का। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर की प्रतिष्ठा स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी।
धार्मिक मान्यता- कहते हैं कि यह मंदिर रामायण काल में राम वनवास के समय का है। जब राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में घूम रहे थे तभी सीता को बड़ी जोरों की प्यास लगी। राम ने लक्ष्मण से पानी लाने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया। पहली बार लक्ष्मण द्वारा किसी काम को मना करने से राम को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने ध्यान द्वारा समझ लिया कि यह सब यहां की दोष सहित धरती का कमाल है। तब उन्होंने सीता और लक्ष्मण के साथ यहां गणपति मंदिर की स्थापना की जिसके प्रभाव से बाद में लक्ष्मण ने यहां एक बावड़ी बनाई जिसे लक्ष्मण बावड़ी कहते हैं। यह बावड़ी आज भी यहां देखी जा सकती है।
मंदिर की विशेषता- मंदिर में एक साथ तीन गणपति प्रतिष्ठित हैं। कहा जाता है कि इनकी सच्ची प्रार्थना करने से ये व्यक्ति की सारी चिंताएं हर लेते हैं। बुधवार को यहां श्रृद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। चैत्र मास के प्रत्येक बुधवार को यहां जत्रा निकलती है।