शिप्रा नदी
हरसिद्धि देवी और श्रीराम मंदिर के पीछे उज्जैन नगर के पूर्वी छोर पर शिप्रा नदी बहती है। महाकवि कालिदास और बाणभट्ट ने शिप्रा के गौरव और गरिमा का गुणगान अपने काव्य में किया है, पर आज की शिप्रा दयनीय हालत में है। भक्तगण इसकी स्वच्छता का बहुत कम ध्यान रखते हैं। उज्जैनवासियों के लिए शिप्रा जीवनदायिनी है। उन्हें दैनिक उपयोग के लिए जल की आपूर्ति शिप्रा से ही की जाती है। शिप्रा तट पर विशाल घाट, कई मंदिर और छतरियां बनी हुई हैं। यहां जगह-जगह पुजारी भक्तों को पूजा कराते नजर आते हैं। दूर-दूर तक कई घाट बने हुए हैं जिनमें रामघाट, नृसिंह घाट, छत्री घाट, सिद्धनाथ घाट, गंगा घाट और मंगलनाथ घाट प्रसिद्ध और पौराणिक महत्व वाले हैं। नदी के दूसरी ओर कुछ अखाड़े हैं जहां साधु रहते हैं। सिंहस्थ का पर्व दोनों तटों पर लगता है।
उज्जैन नगर के धार्मिक स्वरूप में क्षिप्रा नदी के घाटों का प्रमुख स्थान है। नदी के दाहिने किनारे, जहाँ नगर स्थित है, पर बने ये घाट स्थानार्थियों के लिये सीढीबध्द हैं। घाटों पर विभिन्न देवी-देवताओं के नये-पुराने मंदिर भी है। क्षिप्रा के इन घाटों का गौरव सिंहस्थ के दौरान देखते ही बनता है, जब लाखों-करोडों श्रध्दालु यहां स्नान करते हैं।
वैशाख मास में अवंतिका वास का विशेष पुण्य कहा गया है। चैत्र पूर्णिमा से वैशाखी पूर्णिमा पर्यन्त कल्पवास,नित्य क्षिप्रा स्नान-दान, तीर्थ के प्रधान देवताओं के दर्शन, स्वाध्याय, मनन-चिंतन,सत्संग, धर्म ग्रंथों का पाठन-श्रवण,संत-तपस्वी, विद्वान और विप्रो की सेवा, संयम,नियम, उपवास आदि के संकल्प के साथ तीर्थवास का महत्व है। जो आस्थावान व्यक्ति बैशाख मास में यहां वास करता है, वह स्वत: शिवरूप हो जाता है।