श्री हरसिद्धि मंदिर

उज्जैन नगर के प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में हरसिध्दि देवी का मंदिर प्रमुख है। चिन्तामण गणेश मंदिर से थोड़ी दूर और रूद्रसागर तालाब के किनारे स्थित इस मंदिर में सम्राट विक्रमादित्य द्वारा हरसिध्दि देवी की पूजा की जाती थी। हरसिध्दि देवी वैष्णव संप्रदाय की आराध्य रही। शिवपुराण के अनुसार दक्ष यज्ञ के बाद सती की कोहनी यहां गिरी थी। यह उज्जैन शक्तिपीठों में भी एक है। महाकाल वन में स्थित हरसिद्धि मंदिर की गणना 51 शक्ति पीठों में की जाती है।

बड़े गणेश के मंदिर से शिप्रा नदी की तरफ जाने के रास्ते में मंदिर से बीस कदम दूर हरसिद्धि देवी का मंदिर है। हरसिद्धि देवी सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य थीं। किंवदंती है कि सम्राट विक्रमादित्य ने हरसिद्धि को ग्यारह बार अपना मस्तक काटकर चढ़ाया और हर बार फिर मस्तक जुड़ गया। मंदिर के चारों तरफ चार द्वार हैं। मंदिर के दक्षिण में एक बावड़ी है। मंदिर में अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति भी है। मंदिर के बीच में एक गुफा में साधक साधना करते हैं। मंदिर के समक्ष दो ऊंचे विशाल दीप स्तंभ हैं, जिन पर 726 दीपों के स्थान बनाए हुए हैं। नवरात्रि के समय यहां दीप जलाए जाते हैं, जिनका भव्य दृश्य इस मंदिर को आलोकित करता है।

हरसिद्धि देवी के मंदिर के पास एक पतली सी गली है, जिसमें कई छोटे-छोटे मंदिर हैं। इनमें एक मंदिर विक्रमादित्य का है। यहां विक्रमादित्य को समर्पित यह एकमात्र मंदिर है। हालांकि अब हरसिद्धि देवी के सामने वाली बावड़ी के बीच में विक्रमादित्य के एक और मंदिर का निर्माण चल रहा है। इसमें काल भैरव का एक मंदिर भी बनाने का यत्न किया जा रहा है। विक्रमादित्य मंदिर के साथ ही पाटीदार समाज द्वारा बनाया गया श्रीराम मंदिर है। यहां राम, लक्ष्मण, जानकी और हनुमानजी के साथ नवदुर्गा तथा शिव जी की मूर्तियां स्थापित हैं।

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