पितृदोष शांति पूजन

पितृदोष किसे कहते है ?

हमारे पूर्वज, पितर जो कि अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति, असंतुष्टि का अनुभव करते हैं एवं उनकी सद्गति या मोक्ष किसी कारणवश नहीं हो पाता तो हमसे वे आशा करते हैं कि हम उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन या उपाय करें जिससे उनका अगला जन्म हो सके एवं उनकी सद्गति या मोक्ष हो सके। उनकी भटकती हुई आत्मा को संतानों से अनेक आशाएं होती हैं एवं यदि उनकी उन आशाओं को पूर्ण किया जाए तो वे आशिर्वाद देते हैं। यदि पितर असंतुष्ट रहे तो संतान की कुण्डली दूषित हो जाती है एवं वे अनेक प्रकार के कष्ट, परेशानीयां उत्पन्न करते है, फलस्वरूप कष्टों तथा र्दुभाग्यों का सामना करना पडता है।

पितृदोष से होने वाली हानिया

यदि किसी जातक की कुंडली मे पित्रृदोष होता है तो उसे अनेक प्रकार की परेशानियां, हानियां उठानी पडती है। जो लोग अपने पितरों के लिए तर्पण एवं श्राद्ध नहीं करते, उन्हे राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, ब्रहमराक्षस आदि विभिन्न प्रकार से पीडित करते रहते है।

  • घर में कलह, अशांति रहती है।
  • रोग-पीडाएं पीछा नहीं छोडती है।
  • घर में आपसी मतभेद बने रहते है।
  • कार्यों में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो जाती है।
  • अकाल मृत्यु का भय बना रहता है।
  • संकट, अनहोनीयां, अमंगल की आशंका बनी रहती है।
  • संतान की प्राप्ति में विलंब होता है।
  • घर में धन का अभाव भी रहता है।
  • अनेक प्रकार के महादुखों का सामना करना पडता है।

पितृदोष के लक्षण

  • घर में आय की अपेक्षा खर्च बहुत अधिक होता है।
  • घर में लोगों के विचार नहीं मिल पाते जिसके कारण घर में झगडे होते रहते है।
  • अच्छी आय होने पर भी घर में बरकत नहीं होती जिसके कारण धन एकत्रित नहीं हो पाता।
  • संतान के विवाह में काफी परेशानीयां और विलंब होता है।
  • शुभ तथा मांगलीक कार्यों में काफी दिक्कते उठानी पडती है।
  • अथक परिश्रम के बाद भी थोडा-बहुत फल मिलता है।
  • बने-बनाए काम को बिगडते देर नहीं लगती।

पित्रुओं की शांति, तर्पण आदि न करने से पाप

पित्रुओं की शांति एवं तर्पण आदि न करने वाले मानव के शरीर का रक्तपान पित्रृगण करते हैं अर्थात् तर्पण न करने के कारण पाप से शरीर का रक्त शोषण होता है।

  • पितृदोष की शांति हेतु त्रिपिण्डी श्राद्ध, नारायण बलि कर्म, महामृत्युंजय मंत्र
  • त्रिपिण्डी श्राद्ध यदि किसी मृतात्मा को लगातार तीन वर्षों तक श्राद्ध नहीं किया जाए तो वह जीवात्मा प्रेत योनि में चली जाती है। ऐसी प्रेतात्माओं की शांति के लिए त्रिपिण्डी श्राद्ध कराया जाता है।
  • नारायण बलि कर्म यदि किसी जातक की कुण्डली में पित्रृदोष है एवं परिवार मे किसी की असामयिक या अकाल मृत्यु हुई हो तो वह जीवात्मा प्रेत योनी में चला जाता है एवं परिवार में अशांति का वातावरण उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिति में नारायण बलि कर्म कराना आवश्यक हो जाता है।
  • महामृत्युंजय मंत्र महामृत्युंजय मंत्र जाप एक अचूक उपाय है। मृतात्मा की शांति के लिए भी महामृत्युंजय मंत्र जाप करवाया जा सकता है। इसके प्रभाव से पूर्व जन्मों के सभी पाप नष्ट भी हो जाते है।

पितृदोष की शांति हेतु सरल उपाय

  • घर में कभी-कभी गीता पाठ करवाते रहना चाहिए।
  • प्रत्येक अमावस्या को ब्राहमण भोजन अवश्य करवायें।
  • ब्राहमण भोजन में पूर्वजों की मनपसंद खाने की वस्तुएं अवश्य बनायी जाए।
  • ब्राहमण भोजन में खीर अवश्य बनाए।
  • योग्य एवं पवित्र ब्राहमण को श्राद्ध में चांदी के पात्र में भोजन करवायें।
  • स्वर्ण दक्षिणा सहित दान करने से अति उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
  • पित्रृदोष की शांति करने पर सभी परेशानीयां अपने-आप समाप्त होने लगती है। मानव सफल, सुखी एवं ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Translate »